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________________ युगवीर निवन्धावली प० पन्नालाल वाकलीवाल, वा० सूरजभान वकील, ब्रह्मचारी शीतलप्रमाद, प० नाथूराम प्रेमी और प० जुगलकिशोर मुन्नार सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं। श्वेतावर सम्प्रदायमे मृनि आत्माराम, मुनि जिनविजय, पं० सुखनाल तथा प० बेचनदास और अग्रेजी मापा जैन लेग्यकोमे प० लालन, वीरचन्द राघवजी गाधी, जगमन्दरलाल जैनी, पूर्णनन्द नाहर, चम्पतराव वैरिस्टर और अजितप्रमाद वकील उस कालमे उल्लेखनीय रहे। इन प्रभृति प्रारभिक जैन निवधलेखकोमेसे अधिकाश दिवगत हो चुके है और जो अभी हमारे सौभाग्यसे विद्यमान हैं उनमे प्राक्तन-विद्या-विचक्षण, पाच्य-विधा-महार्णव, सिद्धान्ताचार्य आदि उपाधि विभूपित ९० वर्षीय आचार्य श्री जुगलकिशार मुख्तार 'युगवीर' अनेक द्रष्टियोसे अद्वितीय रहे है। ___ वर्तमान शताब्दीके प्रारभसे ही-पाय मात दशक पूरे होने आयेमुस्तार साहव जैन सस्कृति, जैनसाहित्य और जैनममाणही सेवा तन, मन और धनसे एकनिष्ठ होकर करते आये है। और यह मेवा के स्वान्त - मुखाय एवं कर्त्तव्यबुद्धिसे करते रहे है, आजोविका द्रव्याजन या मानार्जनका भी उसे कभी साधन नही बनाया । वस्तुत , ऊपर जिन महानुभावोगा उल्लेख किया गया है उनमेसे प्राय माही और उनके अनेक नापी भी इसी कोटिके अमूल्य कार्यकर्ता रहे हैं। उनमें से प्राय सबने ही निजी आजीविकाके स्वतन्त्र सावन रक्खे और माय ही अपनी रत्ति, कर्तगबुद्धि, लगन और अध्यवसायसे शास्त्रोका अध्ययन करने और उनका रहस्य समझनेकी क्षमता प्राप्त की, कई-कई भाषाओपर अधिकार किया, समाजकी दुर्दशा, पीडा और आवश्यकताओका अनुभव किया, और अपने समय एव श्रमका, वहुधा अपने निजी द्रव्यका भी, यथाशक्य अधिकाधिक उपयोग समाज एव मस्कृतिकी सेवामें किया। उन्होंने प्रतिक्रियावादी स्थितिपालकोंके कट्टर विरोधोसे टवकरें ली, स्वजातिसे अपमान, लाछन और वहिप्कार तक सहे तथापि वे युगवीर कर्त्तव्यपधपर डटे रहे। वर्तमान युगमे जनजागरणके इन अग्रदूतोंने भी उसी परम्पराका अनुसरण किया जिसे पूर्वकालमे वीर चामुण्डराय, वस्तुपाल, आशाधर, हस्तिमल्ल, मल्लिनाथ, इरुगुप्प दण्डनायक, तारणस्वामी, लोकाशाह, बनारसीदास, रूपचन्द, भूधरदास,
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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