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________________ विवाह - क्षेत्र- प्रकाश हमे कोई आपत्ति ही न करनी चाहिए और या जिनसेनाचार्यको ही अपनी आपत्तिका विषय बनाना चाहिए । १०१ जैन कथा-ग्रन्थोमे सैकडो वाते एक दूसरेके विरुद्ध पाई जाती हैं, और वह आचार्यों- आचार्योका परस्पर मतभेद है । पडित टोडरमलजी आदिके सिवाय, प० भागचन्दजीने भी इस भेद-भावको लक्षित किया है और नेमिपुराणकी अपनी भापाटीकाके अन्तमे उसका कुछ उल्लेख भी किया है ' । परन्तु यहॉपर हम एक बहुत प्रसिद्ध घटनाको लेते हैं, और वह यह है कि सीताको उत्तरपुराणमे रावण की पुत्री और पद्मपुराणादिकमे राजा जनककी पुत्री वतलाया है । अव यदि कोई पुस्तक-लेखक अपनी पुस्तकमे इस वातका उल्लेख करे कि 'श्रीगुणभद्राचार्य - प्रणीत उत्तरपुराणके अनुसार सीता रावणकी बेटी थी, तो क्या उस पुस्तककी समालोचना करते हुए किसी भी समालोचकको ऐसा कहने अथवा इस प्रकारकी आपत्ति करनेका कोई अधिकार है कि पुस्तककारका वह लिखना झूठ है, क्योकि पद्मपुराणादिक दूसरे कितने ही ग्रन्थोमे सीताको राजा जनककी पुत्री लिखा है ? कदापि नही । उसे उक्त कथनको झूठा बतलानेसे पहले यह सिद्ध करना चाहिये कि वह उस उत्तरपुराणमे नही है जिसका पुस्तकमे हवाला दिया १ यथाः – “यहाँ इतना और जानना इस पुराणकी कथा [ और ] हरिवशपुराणकी कथा कोई-कोई मिलै नाहीं जैसे हरिवशपुराण विषै तो भगवानका जन्म सौरीपुर कह्या और इहा द्वारिकाका जन्म कह्या, वहुरि हरिवगमें कृष्ण तीसरे नरक गया कह्या, इहा प्रथम नरक गया कह्या और भी नाम ग्रामादिकमें फेर है सो इहा भ्रम नाही करना । यह छद्मस्थ आचार्यनके ज्ञानमें फेर पर्धा है ।" - नेमिपुराण भाषा नानौताके एक. मदिरकी प्रति ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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