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________________ कर्ता कर्माधिकार ( ९७/१ ) पर में प्रात्म विकल्प यही है भ्रम मूलक अतिशय प्रज्ञान ! अज्ञानी अज्ञान भावका यों निश्चित कर्ता भमठान निज निज है, पर-पर-एवं जब हो उत्पन्न भेद विज्ञान । तब निज पर संबंधित भामक कृत भाव का हो अवसान । ( ६७/२ ) शंका समाधान जान मात्र से नश जाता क्या चिर कर्तृत्व भाव भगवन् ! गुरु कहते-सुन, प्रथम वस्तु का तत्व ज्ञान कर भव्य ! गहन । तब सराग समदृष्टि बन करे अशुभ कर्म कर्तृत्व विनाश । वीतराग समदृष्टिबन कर पुनः शुभाशुभ कर्म विनाश । (६८ ) जीव पर द्रव्य का क उपचार से है। कहलाता उपचार नयाश्रित घटपट का कर्ता चैतन्य । इन्द्रियादि करणों का या नो कर्म-कर्म का जो पर जन्य । इस प्रकार निज-भिन्न द्रव्य का कर्ता है व्यवहार प्रमाण । है उपचार मात्र वह केवल, निश्चय पर कर्त्त त्व न जान । (97/1) अवसान-अंत । भ्रामक-भ्रम में डालने वाला । (98) करणों-साधनों। परजन्म-दूसरों से उत्पन्न होने वाला।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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