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________________ कत्ता-कर्माधिकार ( १३३ ) असंयम व कपाय का परिणाम उदय असंयम का हो तब हों अविरति रूप मलिन परिणाम । जिनके विवश पाप तज चेतन व्रत धारण नहि कर अकाम । जब कषाय का उदय प्राप्त हो तब कलुषित हों भाव अशेष । रागद्वेष मे सना हुवा है जिनसे जन जीवन निः-शेष । ( १३४ ) योग की विशेषता योग उदय चेष्टाएं होतीं मन वच काय जन्म अविराम । इच्टानिष्ट कार्य में होते तब सचेष्ट निष्चेष्ट सकाम । यों मिथ्यात्व कषाय असंयम योग वश हवा जीव-प्रवीण ! सम्यकदर्शन ज्ञान चरण से वंचित रहता, सतत मलीन ! ( १३५ ) अजान मयी भावों का परिणाम भावों का निमित्त पा पुद्गल कर्म वर्गणायें तत्काल । ज्ञानावरणदिक वसु विधिकर कर्मरूप धर रहे विशाल । यथा उदर में भक्त असन का रसरुधिरादि रूप परिणाम । सप्त धातुमय हो जाता है, त्यों परमाणु परिणाम वाम । (133) अकाम-बिना किसी सांसारिक भोग की इच्छा के। अशेष-सब । निःशेषपरिपूर्ण । (134) सचेष्ट-चेष्टा सहित । निश्चेष्ट-चेष्टा रहित । सकाम-कामना सहित । (135) भुक्त असन-किया हुआ भोजन ।बाम-विकारमयी, विकृत ।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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