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________________ जीवाजीवाधिकार ( १२/२ ) निश्चय नय के आश्रय का पात्र कौन ? जो जन परमभावदर्शी बन करता चिदानन्द रस पाननिश्चय का सत्पात्र वही जो स्वाश्रय ले करता कल्याण । जब जन शुद्ध भाव संश्रय पा स्वानुभूति में रहता लीन । उसे प्रयोजनवान् स्वतः नहि रहता नय व्यवहार, प्रवीण! ( १२/३ ) अभिप्राय यह है कि शुद्ध नय का आश्रय लें साधु प्रवीण प्रात्म साधना निरत सतत जो परमभाव दर्शन में लीन । स्वर्ण पात्र संधारण करता दुग्ध सिंहनी का अविकार । कांस्य पात्र में टिक न सके वह, खंड खंड हों पड़ते धार। ( १२/४ ) जिन शासन म सापेक्ष नय ही सम्यक्ज्ञान के प्रतीक है निश्चय या व्यवहार दृष्टियाँ समीचीन रहती सापेक्ष - स्वपर विषय को मुख्य गौण कर; किन्तु असत्य वही निरपेक्ष । क्योंकि न गुण- पर्यय से होता शून्य कभी कोई भी द्रव्य । और न गुण पर्याय कभी भी विना द्रव्य रहते है लभ्य । (12/2) परमभावदर्शी-शुद्धात्मतत्व दृष्टा-शुद्धोपयोगी-अभेद रूप रत्नत्रयलोन । (12/4) समीचीन-सत्य-ययार्थ। सापेक्ष-अपेक्षा रखते हुए। निरपेक-दूसरे नय की अपेक्षा न रखते हुए । लम्य-प्राप्त । पर्यय-पर्याय, वसा ।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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