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________________ समयसार-वैभव ( २७७१ ) निश्चय धर्म का स्वरूप निश्चय धर्म प्रात्म ही है-सद् दर्शन ज्ञान चरण में लीन । प्रत्याख्यान वही है पावन-संवर योग स्वस्थ स्वाधीन । आत्म तत्व उपलब्ध जिसे है सार्थक है उसका सब ज्ञान । दर्शन भी उसका यथार्थ है सफल सकल चारित्र महान । ( २७७/२ ) निश्चय मे व्यवहार स्वय विलीन हो जाता है यों निश्चय धर्मस्थ योगि के हो जाता व्यवहार विलीन । यतः पराश्रय नहि लेकर वह रहता स्वात्म साधनालीन । इस कारण निश्चय नय द्वारा किया गया व्यवहार निषिद्ध । निश्चय बिन व्यवहार धर्म का-लोप-स्वछंद वृत्ति प्रतिषिद्ध । ( २७८--२७६ ) ___ आत्मा का रागादि अध्यवसान रूप परिणमन पर निमित्तक है इसका दृष्टांत द्वारा समर्थन शुद्ध स्फटिक मणि सुना आपने, वह न स्वयं होता है रक्त । जपा कुसुम को संगति पाकर ही परिणमता बन अनुरक्त । त्यों ज्ञानी की शुद्ध चेतना स्वयं न होती विकृत, निदान । मोहादिक कर्मोदय द्वारा अनुरंजित हो बनती म्लान । (२७८) बयाकुसुम-एक प्रकार का फूल, जो लाल होता है। अनुरक्त- लालिमा सहित । अनुरंजित-रागमय ।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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