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________________ ७३ समयसार-वैभव ( १५४ ) स्वानुभूति शून्य पुण्य मुक्ति में सहायक नही जिसकी अंतरात्मा रहती परम-अर्थ से शून्य नितान्त । वह अज्ञानी मोहभाव कर केवल पुण्य चाहता झांत । जो संसार परिभ्रमण एवं बंध हेतु है सिद्ध, प्रवीण ! उससे मुक्ति कहाँ से होगी, बिन समाधि में हुए विलीन । ( १५५ ) वास्तविक मक्ति मार्ग क्या? जीवाजीवादिक तत्वों की श्रद्धा है सम्यक्त्व महान । तत्पूर्वक तत्त्वों का अवगम कहलाता है सम्यक्ज्ञान । रागद्वेष मय वृत्तिहीन वर वीतरागता है चारित्र । इनकी एक रूपता सम्यक् मुक्ति मार्ग है परम पवित्र । ( १५६ ) ___ बाह्य वृत्तियो मे उलझने से मुक्ति नहीं निश्चयार्थ साधक समाधि है, उसे त्याग कर जो विद्वान् । केवल बाह्य वृत्तिरत रहकर उससे चाहे मुक्ति महान । उसे कहां से मुक्ति मिलेगी, रहकर सत्समाधि से दूर । पथ परमार्थ ग्रहण कर ऋषिगण कर्मकुलाचल करते चूर । (१५४) परमअर्थ-शुख प्रात्म स्वरूप । (१५५) अवगम-जान-जानपना । (१५६) कुलाचल-पहार पर्वत ।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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