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________________ फर्ता-कर्माधिकार (१४२/१ ) कर्म बद्धता और अबद्धता-दो नयों की दो दृष्टियों है कर्मजीव से बद्ध हुए हैं, नहीं बंधे है, यों दो पक्षदिखते है व्यवहार और निश्चय से यद्यपि पक्ष विपक्ष; किन्तु उभय नय पक्ष मानसिक है विकल्प ही एक प्रकार । समयसार विज्ञान धनमयो निर्विकल्प ही है अविकार । ( १४२/२ ) सर्वनयों का पक्षपात तज साम्यभाव द्वारा चिद्रूप । निर्विकल्प बन सत्समाधि में तन्मय हो शुद्धात्म स्वरूप । राग द्वेष मय तज समस्त ही वैभाविक परणतियाँ म्लान । निविकार शुद्धोपयोग में करता चिदानंद रसपान । ( १४३/१ ) पक्षातिकात बन आत्म स्वरूप मे रमना ही समयसार है उभयनयों द्वारा प्रतिपादित वस्तु स्वरूप समझ अम्लान । कभी किसी नय का नहि करता जब किंचित् भी पक्ष, निदान । तब समस्तनय पक्ष परिग्रह से विहीन बन साध प्रवीण । समयसार सर्वस्व प्राप्त कर निष्कलंक बनता स्वाधीन ।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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