SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसार-वैभव पुद्गल के परिणाम जीव से भिन्न है ऐसे ही पुद्गल में होते कर्म रूप जो विविध विकार । वे पुद्गल मय ही होते है, ज्ञानावरणादिक साकार । तन्निमित्त यद्यपि रागादिक चिद्विकार होते तत्काल । फिर भी पुद्गल-पुद्गल एवं जीव-जीव रहता त्रयकाल । ( १४० ) निष्कर्ष है सारांश यही कि पौद्गलिक परणतियाँ वसुकर्म स्वरूपजीवों या उनके भावों से है स्वतंत्र निश्चित जड़ रूप । त्यों ही जीव भाव रागादिक है, स्वतंत्र कर्मो से भिन्न । यों जड़-चेतन को परणतियाँ भिन्न भिन्न ही है, न अभिन्न । ( १४१ ) शंका समाधान जीव कर्म बद्ध है या अबद्ध? । कर्मजीव में बद्ध और संस्पर्शित है या नहि भगवन् ? क्या यथार्थ इसमें रहस्य है, सरल करें-यह प्रश्न गहन । बंधु ! सुनो, है जीव कर्म से बद्ध और संस्पर्शित म्लान । यह व्यवहार कथन सम्यक् है, निश्चय बद्ध नहीं, अम्लान । (141) संस्पशित-पके हुए । म्लान-मलीन ।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy