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अन्त
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जानि जानि सब जानि है, या कौ सुनौ विचार । सबै सबै के अंग सुनि, समैसार निजसार ॥ ३ ॥ विचार |
सुनिसार ॥ ८४ ॥
राम दोष जिनि दीजियो, सुणिन कयौ
समये सगरे जानि है, ममैसार
इति समैसार संपूरन ।
प्रति- गुटकाकार | पत्र ३१ से ५६, पं० १४, अक्षर ११,
वि० राम कृष्ण, गंगाजी का वर्णन है। साइज ६ x ६ ( पूर्व ३० पत्र
में ज्ञानमार भी इसी कवि का 1