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भाग सम्पादित करा प्रकाशित कराया,एवं प्रस्तुन चतुर्थभाग श्री अगरचद जी द्वारा संपा दित किया गया और संस्थान द्वारा प्रकाशित करवाया है। जो आपके हाथ में है । इसी प्रकार पांचवा और छठा भाग भी क्रमशः श्री नाथूलाल जी व्यास एवं श्री डॉ० भोलाः शङ्करजी व्यास द्वारा सम्पादित किये जा चुके हैं। इनका प्रकारान शीघ्र ही किया जाने वाला है।
प्राचीन साहित्य विभाग में हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज के अतिरिक्त १८००० राजस्थानी प्राचीन चारण गीत विभिन्न विषयों के एकत्रित किये जा चुके हैं।
२-लोक साहित्य विभाग द्वारा हजारों कहावते, लोक गोत, मुहावरे, लोककहानियां, बात-ख्यात, पहेलियाँ, बैठकों के गीत आदि संग्रह किये जा चुके हैं । पं० लक्ष्मीलालजी जोशी द्वारा सम्मादित-मेवाड़ी कहावत, श्रीरतनलालजी मेहता द्वारा सम्पादित मालवी कहावतें पुस्तक रूप में प्रकाशित की जा चुकी है। लोक साहित्य के अंतर्गत श्री जोधसिंहजी मेहता द्वारा सम्पादित 'आदि निवासी भील" भी पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुकी है तथा "भीलों की कहावतें एवं भीलों के गीत भी इसी विभाग के अंतर्गत प्रकाशित किये जा चुके हैं । "भीलों के गीत" नामक दो पुस्तके, लोक वार्ताओं के दो संग्रह प्रेस कॉपी के रूप में तैयार हैं । आर्थिक सुविधा होते हो इन्हें प्रकाशित करा दिया जायगा।
___३-पुरातत्व विभाग के अन्तर्गत पट्ट', परवाने, ताम्रपत्र, और ऐतिहासिक महत्व के अन्य काराज पत्रों का संग्रह किया जाता है । प्राचीन मूर्तियाँ, सिक्के, शिलालेख, चित्र तथा अन्य कलाकृतियाँ एकत्रित की जाती हैं। इनमें अच्छी सामग्री एकत्रित कर ली गई हैं।
४-नव साहित्य-सृजन विभाग से अब तक तीन पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। पं० जनार्दनरायजी नागर द्वारा लिखित "आचार्य चाणक्य" नाटक, पंडित सन्हैयालाल ओझा द्वारा रचित "तुलसीदास" ब्रजभाषा काव्य, एवं श्री हुक्मराज मेहता द्वारा लिखी गई "नया चीन" आदि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । अन्य महत्व पूर्ण पुस्तके अधिकारी विद्वानों द्वारा लिखवाई जा रही हैं।
५-अध्ययन गृह और संग्रहालय विभाग में अबतक १२०० हस्तलिखित महत्वपूर्ण पुस्तकें एवं २२०० मुद्रित ग्रन्थ एकत्रित किये जा चुके हैं । यह धीरे २ एक विशाल संग्रहालय का रूप ले सकेगा ऐसी आशा है ।