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________________ प्रकाशकीय निवेदन राजस्थान में प्राचीन साहित्य, लोक साहित्य, इतिहास एवं कला विषयक प्रचुर मामग्री यत्र-तत्र बिखरी हुई है। आवश्यकता है, उसे खोज कर संग्रह और संपादित करने की। राजस्थान विश्व विद्यापीठ ( तत्कालीन हिन्दी विद्यापीठ ) उदयपुर ने इस आवश्यकता को अनिवार्य अनुभव का विक्रम सं० १९६८ में "साहित्य-संस्थान" ( उस समय प्राचीन साहित्य शोध संस्थान ) की स्थापना की और एक योजना बनाकर राजस्थान की इस साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक निधि को एकत्रित करने का काम हाथ में लिया। योजना के अनुसार "साहित्य-संस्थान" के अंतर्गत विभिन्न प्रवृत्तियाँ निम्न छः स्वतन्त्र विभागों में विकसित हो रही हैं:-- (१) प्राचीन साहित्य विभाग, (२) लोक साहित्य विभाग, (३) पुरातत्व विभाग, (४) नव साहित्य-सृजन विभाग, (५) अध्ययन गृह और संग्रहालय विभाग एवं, (६) सामान्य विभाग । १-'साहित्य-संस्थान द्वारा सर्व प्रथम राजस्थान में यत्र तत्र बिखरे हुए हस्तलिखित हिन्दी के प्रथों की खोज और संग्रह का काम प्रारंभ किया गया। प्रारंभ में विद्वानों को इस प्रकार के ग्रंथालयों को देखने में बड़ी कठिनाइयां उठानी पड़ी। राजकीय पुस्तकालय, जागीरदारों के ऐसे संग्रहालय एवं जहाँ भी ऐसी पुस्तकें थीं, देखने नहीं दी जाती थी, धीरे २ इसके लिये बातावरण बनाकर काम कराया जाने लगा। सबसे पहले साहित्य-संस्थान ने पं० मोतीलालजी मेनारिया द्वारा सम्पादित “राजस्थान में हिन्दी के हस्त लिखित प्रन्थों की खोज प्रथम भाग, प्रकाशित कराया और उसके बाद बीकानेर के प्रसिद्ध विद्वान श्री अगरचंद नाहटा द्वारा सम्पादित उक्त ग्रन्थ का दूसरा भाग छपवाया, तथा श्री उदयसिंहजी भटनागर से तृतीय
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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