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________________ (२२६) लेखा बिना गढ लंका क, सिर नाह साल की संसाक । श्रेसा भुरज सत उतंग, सोवनमेर गिर को शुग ॥ २ ॥ पेहली मीत चीत प्रकार, त्रैवट कोट त्रिकुटा कार ।। जालम कामगढ हुने क, चावी टीप नहीं चुने क ॥ ३ ॥ रीसाल तिहां वंकाक, शाहि को करे पर शंका क ॥ ५ ॥ अंत वरणे चोतरफ वाखाण, पांच कोश की परिमाण । संवत अठारसै बावीस, सुद वैसाख सुभ दीसे क ||१२८|| भाषा गजल को माखी क, अपणी उक्त परि पाखीक । वाचत पढत जण बाखांण, कीजै प्रभु नित कल्याण ॥१२॥ इति श्री जेसलमेर री गजल संपूर्ण । लिखतं स देवीचंद सं०१८५० मिगसर वदी ७, सा निहालचंदजी पुत्र अनोपचंदजी लघुभ्रात मयाचंद पठनार्थं । श्रावक वाचे तेइने धर्म ध्यान है। वाचे विचारे श्रमने पिण याद करज्यो । [ प्रतिलिपि- साल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्य ट-बदरीप्रसाद साकरिया ] गुटका पत्र ११, जैसलमेर साह धनपतसिंह जी के वास । ( २ ) नारी गजल-रचयिता-महिमा समुद्र धादि देखि कामिनी इक खूब, उनके अधिका हे असलूब । कहीय. कहसी तसुतारीफ, देखा मगन हो यह रीफ ॥ १ ॥ जाणे अपछरा मसहर, उमका सूर नवसो नूर । महके स्वास वास कपूर, पइदाबार सम्मी टूर ॥ २ ॥ मध्यपतिसाही सहर मुलतान, दिसे जरका का थान । कायम राजा साहजहांन, अश्या जाणे सम्मो माण ॥ ३४ ॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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