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________________ ( २०५) रोग निदान चिकिच्छ का, पथ क्रियादिक संत । नाम धरयो इन ग्रन्थ को, भी समुद्र सिवंत ॥११॥ प्रथम देश व्यवस्था कहता हौं चोपईप्रथम देश विहि भांति बखाण, जांगुल अनूप साधारण जाण । पित्त वाय अनुकम सही, विधि देसा की प्रकृति कही ॥ १ ॥ जागुल देश पित x x x x x অনুযা प्रति-प्रथम पत्र ही प्राप्त [जैसलमेर घड़ा भंडार] (५) संगीत ( १ ) रागमाला । गिरधर मिश्र । ग्राहि करि प्रणाम हरि नरण कुं दुख नासन सुख चित्त । होति सुमति नाका पटत, रागमाल मुनि मित्त ॥१॥ या प्रमदा जिन राग की, तार ताहि सयोग । अवर गग संगतह, गावत पढन बियोग ॥ २ ॥ समय विना हरि दरसतह, उपजत रोष प्रत्यंग । तहसइ राग समय विना, करत होत मति भंग ॥ ३ ॥ प्रात समइ भइरु कगे. मालव सूर उद्योत । प्रथम याम हिंडोल कर, याम दीप द्वे होत ॥ ४ ॥ निसा श्रादि श्रीराग को, समयो कहर प्रवीण ।। मेवराग मध्य राति विण, गावद सो मति होय ॥ ५ ॥ अन्त पूरव कविकत देखि कर, गिरधर मिश्र विचार । रागमाल रूपक रचे, सत कवि लेहु सुधार ॥ ५८ ॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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