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३ अलंकार ( नायिका भेद-रीति) (१) ज्ञान शृंगार पद्य ३१२ २० सं० १८५१ वै० शु० २ गु० पादि
अथ ग्यान सिंगार लिख्यते।
शिव मृत श्रादि गनेश जय, सरावत हृदय Hधार । ग्यान बधै सिंगार रस, कयौं अग्यान सिंगार ।। शिवजू सदा अद्भुत रस, ता सुत ग्यान निधान । तिन स्वरूप को ध्यान धर, दोहा रचे सुजान || अद्भुत रूप अपार श्रबि, गनपत गहरो गान । ताइ दया ते तास मैं, नवरस गुन जु बखान || प्रथम नायका जात ए, घ्यार मात की मान । पद्मन चित्रन संखनी, बार हस्तनी मान ।
( पाक १८४ तक नायिका फिर नायक लछन,मान भन व ऋतु वर्णन है )
अन्त
अथ शिशिर वर्णन
जगत कियो भयमीत श्रत, है ससिर के सीत । दंपत मिले विहरत सखी, लिये जराफा रीत ॥ संपत ससि सिवबदन मन, सिध घातमा जान ।
सुध वैसाख गुर दूज दिन, मये ग्रन्थ परमान ॥ इति श्री।. ............ प्रति-गुटकाकार ( नं000६, पत्र ३५ पं०१४ ) चित्र के लिये स्थान पर जगह छोड़ने के कारण पंक्ति का ठिकाना नहीं, ) प्रति पंक्ति अक्षर २४ साइजxs |
[ स्थान कु० मोती चन्द जी खजानची संग्रह ]