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प्रति-पुस्ताकाकार पत्र १००, पं. १६, श्र.१८॥ १९ ॥
[नया मंदिर, दि. सरस्वती मंदिर धर्मपुरा, दिल्ली]
प्रतिलिपिः अभय जैन मन्थालय । विशेष- प्रस्तुत ग्रन्थ में विशेष उल्लेख योग्य पारसी वृत्तों के वर्णन हैंश्रतः उसके आदि अन्त के पत्र दिये जाते हैं - बादि
अथ पारसी धंद मेद परमोध्याय प्रारभ्यते । सबै पारसी छनि में, लघु गुरु को पौहार | पुनि लघु गुरु मन नेम हैं, तिनके कहों प्रकार ॥
फिर मक्तूबी, गन प्रस्तार, प्रस्तार, छंद गन भेद, छंद नाम, सालिम बहर, मुतकारिब, मुतकारिब हजज, रमल, रजजू, काफिर, कामिल, मनसरह, खफीफ मुजारज, मुजतिम तबील मुक्तजिव, मदीद बसोत, सरीन, ठारीब, मशाकिल, गरसाल मक्तया, म.लिम अरोचक, गैर सालिम अज्जहाफ, के नीस नाम, यंत्र, अथ भेद आदि का वणन है।
गजल रुपाई मसनवी, पैतत प्रधबा पर्न ।
के द्वै गन तुक सहत धर, मुस्तजाद सो बन ॥ एक चर्न सों मिस एक है, वर्न मुसलिस तीने लहैं । चर्न मुखंमस पाचै मान,विषम चर्न छंद प्रतिय जान ॥
इति श्री जुगतराइ विरचित छंद रत्नावल्या पारसी वृत्त पष्टमोध्या । अथ तुकभेद सममोध्याय
चर्न अन्त जे पर्न पुर, पून बरन है गुन । ने पुर बर्न इ सकल मिल, तुक कहिए जिय जान ॥ संसकत पात बहू, बिन तुक हूँ चंद होई । मावा छंद तुक बिनु नहीं, कहो ग्रन्थ मत जोइ ।