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________________ एक वर्ण को पद प्रगट छबि सलौ मतिमंत । तदुपरि केसवराइ कहि दंडक छंद अनंत ॥ दीर्घ एक हीं वरन को दीजै पद सुखकंद । मंगल सकल निधान जग नाम सुनहु श्रीमंद ।। इसके पश्चात ७७ पद्यों में ८४ छंदों का विवरण देकर "वर्णवृत्तिसमासा" लिखा है। तदनंतर विविध प्रकार के छंद, गनगन दोष, दोहों के उपभेद आदि है। पुरुजन सुस्वपावत रघुपति श्रावत करतति दौर । भारती उतारै सर्व सुवारे, अपनी अपनी पौर ॥ पटि मंत्र असेषनि करि अभिषेकनिदै बाशिष सब शेष । कुंकुम करनि मृगमदपूरनि बरपनि वरणा वेष ॥ ७३ ॥ इति श्री समस्त पंडित मंडली मंडित केसोदास विरचिता छंदमाला समाप्तम् । ले०-सम्वन १८३६, बैशाख सुदी ६, शुक्रवार लिखत जती ऋषि...जगता ऋषि पठनार्थम् । शुभमस्तु-वागप्रस्थ पुरे लिपीकृता । प्रति- पत्र १७, पं.- १२, अ. २८ । ४० । [विनयसागरजी संग्रह] (२) छन्द रत्नावली-रचयिता-जुयात राइ । सं० १७३० का० सु० थादि आगग हिम्मत खांन कथन से । श्री बानीकरना पुरुस, कर्यो नु प्रथम उचार । पागम निगम पुरान सब, ताम ताहि जुहार ॥१॥ पिंगल श्रागै गरुड के, रच्यो कला प्रस्तार । पहुंचो पाप समुत्र करि, ईद समुद्र अपार ॥ २ ॥ जगतराह सों यों कहयो, हिम्मति खानबुलाए । पिंगल प्राकृत कठिन है, भाषा ताहि बनाई ॥३॥ छद्रों अन्य जिते कहे, करि इक ठोरै पानि । समुभि सक्न को सार ले, रतनावली बखानि ॥ ४॥ .
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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