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धन्त
( १७६ )
दोहा
ग्यान अनल कौं थरनि सम, मुनिजन जीवन मूर्ति ।
वरनी सतक विराग की भावन
मरुधर
नगर सु जोधपुर, बसियौ
राम
सने ही साधु हम, खैरावा
कवित्त
1
भाखा भूरि ॥१०६ ॥ सदा बखान ।
गुरु थान ॥ ११० ॥
स्वच्छ रमनीय हीय र अनुप जाके नीति राम विमल विराग त्याग तैं भरी । जरी गुन दानक के मानक विसेख बनी सिंधु भव भूरि ताके तरिबे को हैतरी । रसिक रिकाfeat विवेक की बटावनी है।
जेते बुद्धिवंत ताके जीवन अंक नै अंक इंदू मास सुचि
को हैजरी ।
शका कवि
माया मैं वखांनी टीका मावन मरतरी ॥ १११ ॥
इति श्री भरतरी सत मात्रा वैष्णव भावना दासेन विरचिता वैराग्य मंजरी
समाप्ता ॥ ३ ॥
भितृहरि शतक के तीनों शतकों के मूल श्लोक और उनके नीचे उनका पद्यानुवाद दिया हुआ है I
प्रति-
-गुटकाकार | पत्र ९६० ॥ पं. अक्षर २२ | इसके बाद चाणक्य मूल और पद्यानुवाद इन्हीं टीकाकार का है।
( २ ) भतृ हर शर्त, भाषा टीका
आदि
॥ ६८ ॥ श्री गुरुभ्योनमः ॥ अथ भतृ हर शतं निख्यते ॥
भर्तृहर नाम ग्रंथ करतो । ग्रंथ की निर्विघ्न समाप्ति कौं। ग्रंथ के आरंभ समय श्री महादेव को प्रणाम रूप मंगल करत है | कैसे हैं श्री महादेव | ज्ञान दीप रूप तें अधिक है त हैं । कौन ठोरि विषै वर्त्तत हैं । जोगीश्वरन्ह को जेवंत सोई भयो र तामैप्रवर्त्तत हैं । पुनः कैसी हैं श्री महादेव । माथै उपरी घरि है