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इति बारे मासी संपूर्ण प्रति-१ आधुनिक प्रति । पद्य १२ ।
[अनूप संस्कृत पुस्तकालय ] ( १७ ) बारामासी । पद्-१२२ । रचयिता हामद काजी ।
अथ हामद काजी कृत बारहमासो लिख्यते । धादि
दृहाश्राप निरंजन आदि कल, रच्यो प्रेम मंडाण | रूप मुहमद देह घर, खेल्यौ खेल निदान ॥१॥ एक बकेले अंग , स्वाद लग्यो नह नेह । विरह जोती जगमगित, अपकरिय यह देह ॥ २ ॥
विवरण द्वादस मास को, मो तन पयो पहार । ज्यों उगों जरी विजोग ते, रयों त्यों करी पुकार ॥ ५ !!
धाज मलै उद्योन भयो, दिन नागर नाह विदेस से पायो । हूँ मग जोय पकी बहु चाहत, भागबड़े घर बैठे हि पायो । नैन सिराय हियो मयो सीतल, कोट कचावन मंगल गायो ।
हामद महाग सेज बनाय के, पाणंद सं हसी रंग बनायो ॥ १२२ ॥ इति काजी हामद कृत बारहमासो संपूर्ण । लेखन काल-संवत् १८२८ वर्षे भादवा सुदि ६ सनी लिखितम् हरी धीर
मनिहि प्रति- गुटका कार । पत्र-५ । पंक्ति-२० । अक्षर ३८ । साइज Ex
[अभय जैन ग्रंथालय] (१८) बारहमासा। पद्य ८३ । रचयिता- साहि महमद फुरमवी अब बारहमासा साहि महंमद फुरमती का लिख्यते ।