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________________ (१५) (३५) ननबाड़ के मूलणे- रचयिता - मगनजान्न । सं. १६४० मा शु.८, पत्र २६ । श्रादि सरसन सामया विनव, गणपत लागु पाय । सील तनी नब बाडक, मावा मन हुलसाय ॥ १ ॥ नत्रवाड़ा के झूलणा, दोसा सहित बनाय ।। गुरु कृपा से मगन ने, कीनो दो घर पाय ॥२५॥ अझी कने दो घट श्रान, मास भाद्रव सुद अधम धारी है । उगीसे साल चालिसमें, किया चौमासा सुखकारी है । जिन घरमो धावक लोक वसे जिन थानह सु मनसा धारी है । कहै मगनलाल मभ बुध तुप, ग्यांनी जन लेवा सुधारी है ।। "रकाकार - [गोविंद पुस्तकालय] (३६) नेमजी रेखता शादि समुद विनइका फरजंद ब्याहन को श्रापने नेमनाथ खूब धनग कहाया है । वस्वत विलंदसीस सेहरा विराजता है, जादों सस पनकोटि जान म्यूब लाया है । यानवर देखिकै यहरबान हुवा श्राप, इदको खलास करौ येही फरमाया है। जाना है जिहाँनको दरोग है विनोदीलाल,गिनार जाय मक्ति सैती चितलाया है। गि स्नेरगद सहाया, खुस दिल पसन्द आया तो जोग चित्तलाया तन कहाँ गया है। शुभ ध्यान चित्त दीन्हां नवकार मंच लीन्हा, परहेज कर्म क्या है ॥ स्त्री लिंग छेद कीन्हा पुलिंग पद लीन्हा ससद रहे स्वर्ग पहुँची ललतांग पद भया है। खुस रेखते बनाये लाल विनोदी गाये अनुसाफदर्प दाते, राहुल का मया है । इति श्री नेमिनाथजी की रेखता समाप्त [अभय जैन ग्रंथालय]
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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