SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदि पन्त ( ३३ ) द्वादश अनुपेक्षा कालू ( १४३ ) अथ माना लिख्यते भुव वस्तु निश्चल सदा, स्कंध रूप जौ देखिये, अभुत्र साव पट जाय । पुग्गल तखौ विभाव || || छंद - जीव सुलक्षणा हो, मो प्रति मारयौ श्राज | परिग्गह परितया हो, तास्यों को नहीं बाज ॥ कोई काज नाही परहों सेती सदा ऐसी जानिये 1 चैतन्य रूप अनूप निज धन तास मुख मानिये | पिग पुत्र बधव सवल परियगा पथिक मगी पेवगा । समग्राय दंगा सौ चरित्रह संग रहै जीव सु(ल) क्षणा ॥२॥ कथ कहानी ग्यान की, कहन सुननं की नाहि । श्रापन ही में पाइये, जब देखें घर मोहि ॥ ३६ ॥ इति द्वादश अनुप्रेक्षा अलू कृत समाप्ता । प्रति-गुटकाकार | साइज ६|| +५|| | पत्रांक २०५ । से २०५ । पंक्ति २१ । अक्षर २६ । [ अभय जैन ग्रंथालय ] ( ३४ ) नवतत्व भाषा बंध । पय ८२ । रचयिता लक्ष्मीवल्लभ । रचना काल संवत् १७४७ बै० ब० १३ । हिसार । आदि श्री श्रुत देवता मन में ध्याय, लहि श्री सद्गुरु को सुपसाय । are करो न तत्व विचार, भावत हुँ सुणियो नरनार ॥ १ ॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy