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(२३) ज्ञान चिंतामणि । पदा-१२६ । रचयिता-मनोहराम |
रचना काल संवत् १७२८ शुक्न ७ भृगुवार । बुरहानपुर । आदि
आदि के कई पत्र गायब हैं। अन्त
यसी जानि ज्ञान मन धरो, निरमल मन परमारध करो। संवत् १७२८ माही सुदो सप्तमी मृगुवार कहाई ॥१२३॥ नगर बुरा ( बुरहा । न पुर खान देश माही, मुमारख पुग वमे गा माह । धने श्रावक, वमें विख्यात् . सदा धरम करें दिन गत ॥१२४॥
दोहा मकल देव नछा करे, ग्रह न पीठे काय । जो सम-दृष्टि हो रहे, ताकि मलि गति होय ॥१२५॥ श्री श्रादि जिन ममरता. हिरदै आयो शान । ब्रह्म मथानिक में कयौ, लिग्थ्यो धरम ३६ ध्यान ॥१२५॥ भये पठारा दोहरा, गाथा पावन सार ।
और अठावन चीपई, इतना में विस्तार ॥१२॥ सा मत के मंग सों, हुवो ज्ञान प्रकाश ।
परमारथ उपगार थे, कहे मनोहरदास ॥१२८॥ ज्ञान चिंतामणि संपूर्ण ।
लेखन काल-मिति प्राषाद वदी १० संवन १८२४ केवल रसी लिप्यकृतम । वांचे तिनको जथा जोग्य वंचना । प्रति-गुटकाकार । पत्र-२० । पंक्ति-१२ । अक्षर-१४, साइज-५|||६.
[ अभय जैन ग्रन्थालय ] (२४) ज्ञान प्रकाश । रचयिता-नंदलाल । रचना काल-संवत् १६०६ । कपूरथला। पादि
बद्धमाणं नमो किच्चा सासण नाय जो मुणि ।