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________________ ( ५ ) करुणा छत्तीसी । माधोराम । पादि श्री गणेशायनमः ॥ अथ करुणा छत्तीमी लिख्यते । कवित्तऐरे मेरे मन काहे विकल बिहाल होत, पत्रभुज चिंतामनि तेरी चिंत हरि हैं । धारको घर अंथर विसमा कहावत है , भोमे दीन दुरबल को कैमे विसरि है ।। असरन सरन जैसो विरद जो धरावत है , भीर परे भगतन को कैसी भात टरि हैं । बार न की बार कछु करी नहीं कार मौष कैपे के अंबार वे हमारी बारि करि हो ॥ १ ॥ करन अपराध मोर मामकोर कोर नित , अनहीक गेर मन और की निकाम छ। अरचा न जान कह चरचा न बझत हूँ , कब रेत प्रीत सौं न लेत हरि नाम है। सबै तकवीर बलवीर मेरी छीमा करी , * माधोगंभ प्रभु तुहागे गुलाम हूं ॥ ३६ ॥ या करणा छत्तीसी को, पदै सनै नर नार । ताकै सत्र दुख दंद को, काट किसन मुरार ॥१॥ इति श्री करणा छतीमी लिखतं संपूरणं ॥ लेखन-संवत् १७६६ रा मिती मिगसर बद । भोम । प्रति-गुटकाकार । पत्र। पंक्ति १६ । अक्षर २० । माइज-ex |
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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