SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्त (८७ > २. संवत् १८२४, आश्विन वदी ७ कर्मवाक्यां श्री देशनोक पध्ये भुवनविशाल गणि तत् शिष्य फहदचंद दित्त पत्र २ । पंक्ति १५ | अक्षर ३८ | साइज ६ ||४|| | [ स्थान - अभय जैन ग्रन्थालय ] ( ६ ) धर्म- बावनी । पय ५७ । रचयिता - धर्मवर्द्धन । रचनाकाल - संवत् १७२५ कार्तिक कृष्णा | रिणी । आदि ॐकार उदार गम्म अवार, संसार में सार पदारथ नामी | सिद्धि समृद्ध सरूप अनूप, भयो सबही सिर भूष सुधामी । जाऊं कियो धुरि अंतर-जामी । मंत्र में, जंत्र में, ग्रन्थ के पथमं पंच हीं इष्ट वसें परमिन्द्र, सदा धर्मसी कहै तामु सलामी ॥ १ ॥ ज्ञान के महा निधान, बावन बरन जान, कीनी, पाठत पठन ताकी जोरि यह ज्ञान की जगावनी । नोन संत सुख पावे मोह, निमलकीरति होइ, सारे ही सुहामणी । सौत सतरे पचीस, काती वदी नोमी दीम, चार है विमलचन्द, श्रानन्द वधामयो । नेर विणी तु निरख, नित ही विजैहरख, कोनी तहाँ घर मसीह,नाम धर्मबावनी ॥ ५७ ॥ इति श्री धर्म बावनी । लिपिकाल लि० सि० कुशल सुन्दर मेड़ता नगरे । संवत् १७६८ श्रावण मुदि ११ दिने । प्रति-पत्र | पंक्ति ११ । अक्षर ३६ । साहज ६ || x ४ | पाँच प्रतियाँ । [ स्थान- अभय जैन प्रन्थालय ] ( १० ) प्रबोध - बावनी । पद्य ५४ । रचयिता - जिनरंग सूरि । रचनाकाल संवत् १७३१ मिगसर सुदि २ गुरुवार |
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy