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________________ श्री जिनसुख यतिसर के, सविनीति विद्या के निधान सदाई । पाय नमी रुघपति पयंपित, बावन अक्षर थादि बुलाई ॥ ५ ॥ इति श्री जैन सार बावनी। लेखनकाल- १६ वीं शताब्दी । प्रति-पत्र । पंक्ति १६ । अक्षर ५५ साइज १०x४। । [स्थान- अभय जैन ग्रंथालय ] वि० इसमें चौबीस तीर्थंकरों के २४ पग नाम वार है। ( ७ ) दहा बावनी । दोहा ५३ । रचयिता-जिनहर्ष (मूल नाम जसगज।। रचनाकाल-संवत् १७३० श्रापाद शुक्ला । । आदि ॐ अक्षर सार है, ऐमा अवर न कोय । शिव सरूप भगवान शिव,सिरमा वह सोय ॥ १ ॥ अन्त सतसे वीस सम, नवमी शुक्न भाषाट । दोधक बावनी जमा. पूरण करी कृत गाद ॥ ॥ ३ ॥ [ स्थान-पदिलिप प्रभय जैन ग्रथालय ] ( 2 ) दहा बावनी । दोहा-५८ । रचयिता-सक्षमीवल्लभ ( उपनामगजकवि )। श्रादि उ. अक्षर अन्नग्य गति, धर्म, सदा तम्, चांन । सुम्वर सिध माधक सुपरि, जाकु जपन जहान ॥ १ ॥ श्रन्त दहा बावन्नी करी, ग्रातम पर हितु काज । पटत गुणत वाचत लिम्वत, नर होवत कविराज ॥ ५ ॥ इति श्री दूहा बावनी ममाप्त । लेखन काल-संवत् १७४१ वर्षे पोष सुदी १ । लिम्वितं हीरानंद मुनि । प्रति-१. पत्र ६ के प्रथम पत्र मे। पं० १६ । अक्षर ५३ । साइज १०४४।।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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