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________________ (७४) तास शिष्य पंडितप्रवर, पाठक श्रीजससील । हाको अतेवासि है, नैनसिंह मुखलील ॥ नैनसिंह खरतर जती, सती सदा सुखदाय । प्रन्थ बनायो सित सुगम, श्रीमहाराज सहाय ॥ इनि प्रानंदसिंह महाराज विरचिते नीतिशतक संपूर्णम् । सं०१७EE ज्ये. सु०१, [ अनुप संस्कृत साइबरी] द्वि० गारशतक गनपतिय बहु गजवदन, एक रदन गुन खोनि । विधन विनामन स्वसदन, हरनंदन हित हानि ॥ नासु अनुग्रह पाईक, करि कविसर प्रन्थ । दतीय शनक सिंगार भया, मगम रसिक को पंध ॥ ६ ॥ अंत सुबधि दुसरै सतक की, रचना अति सुखदाइ । नेनचंद खुरतर जती, भाषा लिखी बनाई ॥ तृतीय वैराग्य शतक चिदानंद श्रानंद मय, मासति है तिहु काल । अति विभूति बनभूति मय, जय जय भव प्रतिपाल । अंत जगन प्रसिद्ध धग्नीस वर, प्रानंदसिंध अपार । नयन जती यौ प्रीति कर, दई श्रमीस मधार ॥ ७ ॥ ( ४ ) भर्तहरि वैराग्य शतक सटीक (चौथा प्रकाश) रचयिता- जिनसमुद्रसरि सं० १७४० । श्रादि স্য গলিঘৰীযুত মি: ল সখিনাখন ৰহমাপ্পি श्रतोच मा प्रकाशोथ चतुर्थ मंश १,
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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