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________________ पुनि श्री कछु पंडित मान के लेखिने, पंडित है अमिमान बहै है । नर नाहि रिझे तऊ सो विधि ज विधि, सो जहजार विचार कहै है । अंत पर के घर बहु धन निरखि, पर प्रिय दर जोई । याने सुकत सो रहित मन, चित प्राकुल होई ॥ १६ ॥ संत सहन अरु नीति मग, दाता लाता मान । मस्व निरदय सदय के, वरने गुन इह वानि ॥ ११ ॥ प्रशस्ति विक्रमनगर २ विगाह, अलकापुर अनुहार । मुथिर वास मंदर सम्स, रिद्धि मिद्वि मंडार ॥ कमधवंश गठौरपति, श्री अनूप महाराज । गों जीते परिदल सकल, ज्यों हरि प्रसार समान ।। ता को नंदन सम्वसदन, गजति यों करनेम । प्रबल तंज साहस प्रबल, आनंदसिंघ नरेम ॥ मकान समा जाकी चतुर, सकल मर मामंत । • मकल लोक दातार पनि, साहसीक मतिमंत ॥ याकी पति मति गति उकति, परन मकै कवि कौन । स्वाग त्याग निकलंक • नप, मजस मरे बिहुँमौन ॥ कवि कवि सुंअति ही अरघ, बह आदर धरिटेन । ग्रन्थ ग्चायो तिन सगम, मकान लोक मुम्ब देत ॥ नीतिसतक संम्झतमय, नगई को ठाम ! करि भाषा ग्चना धर्यो, प्रानंद भूषण नाम || संवत स वस रिषि रसा, उजल श्राम मास ! विजयदसमी वर वार रवि, कीनो अन्य परकास ॥ खरनर गछ पाठक महा, श्रीक्षमालाम गृह राज । तास शिष्य वाचक विदुर, ज्ञानसागर सु समाज ।।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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