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________________ प्रस्तावना हिन्दी साहित्य बहुत समृद्ध एवं विशाल है । गत ५०० वर्षो से तो निरन्तर बड़े वेग से उसको अभि वृद्धि हो रही है । विशेषतः सम्राट अकबर के शासन समय से नो विविध विषयक हिन्दी माहित्य बहुत अधिक सृजित हुआ है। १८ वीं शताब्दी में सैकड़ों कवियों ने हिन्दी साहित्य की सेवा कर सर्वागीण उन्नति की। हिन्दी भाषा मूलतः मध्य देश की भाषा होने पर भी उसका प्रभाव बहुत दूर २ चारों और फैला । हिन्दू व मुसलमान, संत एवं जनता सभी ने इसको अपनाया । फलतः हिन्दी का प्राचीन साहित्य बहुत विशाल हैं व अनेक प्रदेशों में बिखरा हुआ है । गत ५५ वर्षों से हिन्दी साहित्य की शोध का कार्य निरन्तर चलने पर भी वह बहुत सीमित प्रदेश व स्थानों में ही हो सका है। अतएव अभी हजारों ग्रन्थ और मैंकड़ों कवि अज्ञात अवस्था में पड़े हैं उनकी शोध की जाकर उन्हें प्रकाश में लाना और हस्तलिखित प्रतियों की सुरक्षा का प्रयत्न करना प्रत्येक हिन्दी प्रेमी का परमावश्यक कर्तव्य है। हिन्दी-साहित्य का वृहद् इतिहास अव तैयार होने जा रहा है। उसमें अभी तक जो शोध कार्य हुआ है उसका तो उपयोग होना ही चाहिए, साथ ही शोध के अभाव में अभी जो उल्लेखनीय सामग्री अज्ञात अवस्था में पड़ी है उसकी खोज की जाकर उसका उल्लेख होना ही चाहिए अन्यथा वह इतिहास अपूर्ण ही रहेगा। अज्ञात सामग्री के प्रकाश में आने पर अनेकों नवीन तथ्य प्रकाश में आयेंगे बहुत सी भूल भ्रांतियां व धारणा र स भाएल हस्तलिम्वित हिन्दी ग्रन्थों के शोध का कार्य बहुत तेजी से होना चाहिए, केवल मरकार के भरोसे बैठे न रह कर हर प्रदेश की संस्था एवं हिन्दी प्रेमियों को इस ओर ध्यान देकर, जो अज्ञात कवि और अन्य उनकी जानकारी में आयें, उन्हें 21 में जाने का प्रयत्न करना चाहिए।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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