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________________ त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्र च्छेद्य-पत्तोंके थोकमें अमुक संग्न्यातकके पत्तोंको छेदनेकी कला, ६. कटच्छेद्य-बीच में अन्तरवाली और एकही पंक्तिमें रक्खी हुई वस्तुओंको क्रमवार छेदनका बान, ७२. सलीब-मरी हुई धातुओंको सहज रूपमें लानेका ज्ञान, ७१. निर्जीव-चातुओंको मारनेका ज्ञान, ७२, शकुनरुत-शकुनों और श्रावालोंका ज्ञान । इस तरह बहत्तर कलाओंका उल्लेख समवायांग सूत्रके बहत्तरत्रं समवायमें और राजप्रश्नीयमें बढ़प्रतिनकी शिक्षाके प्रकरणमें कुछ परिवर्तनके साथ पाना है। कामसूत्रके विद्या समुहेश प्रकरणमें ६४ कलाओं और उनका विवरण दिया हुआ है। इन चौसठ कलाओंमें ऊपर बताई हुई वहत्तर कलाएं समा जाती है। विवरण इस प्रकार है:-- नमूत्रकी कौनसी मालाएँ उसमें कम मूत्र समाती है १-गीत ५. गीत ७. स्वरगत २-वाय ६. वादिन ८. पुष्करगत ६.८ समताल ३-नृत्य १. नाव्य ४-मानेख्य ५-विशेषकच्छेद्य[इसको पत्र- ३. रुप पत्रच्छेद्य इसकी व्याख्या च्छेद्य भी कहा है। तिलक वगैरह के लिए पत्तोंकी विशेषकच्छेद्यकी व्याख्या अनेक तरहकी श्राकृतियाँ के अनुसार भी हो सकती बनानकी कला]
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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