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________________ ४] __ त्रिपष्टि शलाका पुरुष-चरित्र १. पडिलेहण या प्रतिलेखन-(हरेक चीज को ध्यानपूर्वक देखना) ३. गुप्ति-(मन-वचन-काय गुप्ति, देखो पेज ) १. अभिग्रह या प्रतिज्ञा. २. मुनि प्रतिमा-(देखो टिप्पणियों में प्रतिमा' शब्द) इस प्रकार कुल ७० हुए. दूसरी तरह से भी करण सत्तरी गिनी जाती है। बयालीस दोष रहित-आहार, उपाश्रय, वखारपात्र की गवेषणा। ५-समिति, १२ भावना, १२ मुनि प्रतिमा,५ इन्द्रिय निरोध, २५ तरह से पढिन्तहण, ३ गुनि, ४ अभिग्रह (द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से) [प्रयोजन के अनुसार व्यवहार में लाना, हर रोज न लाना 'करण' कहलाता है।] २-कमठ और धरणेन्द्रपाश्वनाथ जी प्रथम भव में सहमति नाम से प्रसिद्ध थे। कमठ उनका भाई था। इसकी दुश्चरित्रता के कारण यह दंडित हुआ । इसका कारण वह मममूति को समझ इनसे बैर रखने लगा 1 पाश्वनाथ जी के दसवें भव में कमठ कठ नाम का पंचाग्नि तप करने वाला तपस्वी हुआ। एक बार गृहस्थावस्था में पाश्वनाथ नी तपस्त्री की धूनी पर गए । वहाँ लक्कड़ जल रहे थे। उनमें से एक लकड़ी की पोल में एक साँप जल रहा था। पार्श्वनाथ जी ने यह बात अपने अवधिज्ञान से नानी। इन्होंने कठ से कहा, "तुम यह कैसा तप करते हो कि जिसमें -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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