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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [७७७ - साथ जाते देखो।" (४५४-४५६ ) लाचार होकर राजाने उसको, उसकी इच्छा पूर्ण करनेकी आज्ञा दी और कहा, "हे पुत्री ! अब मैं तुझे नहीं रोकूँगा। तू अपने सतीव्रतको पवित्र कर " तब उस स्त्रीने प्रसन्नतापूर्वक, राजाके मँगवाए हुए रथमें, अपने पतिके शरीरको बड़े आदरके साथ खुदही रखा और आप अंगपर अंगराग लगा,सफेद कपड़े पहन, केशोंमें फूल गूंथ पहले की तरहही पतिके पास बैठी। सर झुकाए शोकमें मग्न राजा रथके पीछे चला । नगरके लोग अचरजके साथ देखने लगे। इस तरह वह स्त्री नदीपर पहुंची। क्षणभरमें सेवक लोग चंदनकी लकड़ियाँ लाए और मानो मृत्युदेवकी शय्या हो ऐसी चिता रची। फिर पिताकी तरह राजाने उस स्त्रीको धन दिया । वह धन उसने कल्पलताकी तरह याचकोंमें बाँट दिया, जलसे अंजली भरके, दक्षिणावर्त ज्वालावाली अग्निकी प्रदक्षिणा की और सतीके सत् धर्मका पालन करके, पति के शरीरके साथ घरकी तरह चिताकी आगमें इच्छापूर्वक प्रवेश किया। बहुतसे घीकी धाराओंसे सींची हुई आग, ज्वालाओंसे आकाशको प्रकाशित करती हुई अधिकाधिक जलने लगी। विद्याधरकाशरीर, वह स्त्री और सारी लकड़ियाँ, समुद्रमें जाता हुआ जल जैसे लवणमय हो जाता है वैसेही, जलकर राख हो गए। तब राजा उसे निवापांजलि' दे, शोकसे व्याकुल हो अपने महल में आया। (४५६-४६७) - ज्योंही शोकाकुल राजा सभामें बैठा त्योंही तलवार आर भाला हाथों में लिए वह पुरुप आकाशसे नीचे उतरा। राजा और १-जलाने के बाद की एक क्रियाविशेष।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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