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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [७५१ उसी समय कुमारोंके साथ गए हए सामंत, अमात्य.सेनापति वगैरा और जो कुमारॉकी हाजिरीमें रहनेवाले नौकर थे वे सभी-जो वहाँ पासहीमें खड़े थे-उत्तरीय वस्त्रोंसे मुंह ढंके लज्जासे सर झुकाए, दावानलसे जले हुए वृक्षोंकी तरह दुःखसे विवर्ण शरीरवाले, पिशाच और किन्नरोंकी तरह अत्यंत शून्य मनवाले, लुटे हुए कृपणों की तरह दीन और आँसूभरी आँखोंवाले, मानो साँपोंने काटा हो ऐसे कदम कदम पर गिलं गिरूँ करते, मानो संकेत किया हो ऐसे, सभी एक साथ सभामें आए और राजाको प्रणाम कर, मानो जमीनमें धंस जाना चाहते हों ऐसे, सर झुकाए अपने अपने योग्य आसनोंपर बैठे। (१५६-१६०) ऊपर जिसका उल्लेख हो चुका है ऐसी, ब्राह्मणकी वाणी सुनकर तथा विना महावतके हाथियोंकी तरह, आदमियोंको आया देखकर उसकी आँखें इस तरह स्थिर हो गई मानो घे चित्रलिखित हों, निद्रावश हों, स्तंभित हो या शून्य हो । राजा अधैर्यवश मूञ्छित हो गया। जब उसकी मूर्छा गई तथ ब्राह्मणने उसे पोध देने के लिए फिरसे कहा, "हे राजा ! विश्वकी मोहनिद्राका नाश करनेके लिए सूर्यके समान ऋषभदेवके तुम वंशज हो और अजितनाथ स्वामीके तुम भाई हो; फिर भी तुम सामान्य मनुष्यकी तरह मोहके वशमें पड़कर उन दोनों महात्माओंको क्यों कलंकित करते हो ?" ( १६१-१६५) राजाने सोचा."gस प्राणने अपने पुत्रकी मौतके यहाने, मेरे पुत्रोंके नाशरूपी नाटककी प्रस्तावना सुनाई थी। यह बाह्मण साफ तौरसे मेरे पुत्रों की मौतकी बात कह रहा है। इसी
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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