SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 770
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___ ७४६ ] शिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र: पर्व २. सर्ग ६. सांपने काटा था। मैं खाना-पीना छोड़कर रात भर, जागता हुआ शोकमग्न अवस्था में बैठा रहा । उस समय मेरी कुलदेवीन आकर मुझसे कहा, "हं वत्स ! नू पुत्रशोकसे इतना न्याफुल क्यों हो रहा है ? अगर तू मेरी बात मानेगा तो मैं तेरे पुत्रको जीवित कर दूँगी" (६०-१०३) तब मैंने हाथ जोड़कर कहा, "हे देवी! मुझे आपकी आज्ञा स्वीकार है। कारण "पुत्रार्थ शोऋविधुरैः किं वा न प्रतिपद्यते ।" [पुत्रशोकसे दुखी पुरुष (अगर पुत्रके जीनेकी आशा हो तो ) क्या स्वीकार नहीं करते ? अर्थात सब कुछ स्वीकार करते हैं।] फिर देवीने कहा, "जिसके घरमें आज तक कोई न मरा हो उसके घरसे तू शीघ्र जाकर मांगलिक अग्नि ले आ।" (१०४-१०५) तबसे मैं पुत्रको लिलानेके लोभसे हरेक घरमें पूछता हुआ और बालककी तरह हँसीका पात्र बना हुआभ्रांतिसे भटक रहा हूँ। जिस घर में जाकर मैंने पूछा है उसी घरवालेने अपने घरमें असंख्य आदमियोंके मरनेकी बात कही है। अबतक एक भी घर ऐसा नहीं मिला जिसमें आज तक कोई मरा न हो। इससे श्राशाहीन होकर मैंन, मरं हुए की तरह, नष्टद्धि होकर, दीन वाणीमें सारी बातें देवीसे कहीं । (१०६-१०८) कुलदेवीन कहा, "यदि एक भी घर पूर्ण मंगलमय नहीं है नो मैं तुम्हारा अमंगल कैसे मिटा सकती हूँ ?" (१०६)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy