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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [७३१ और प्रमाणोंसे, सूत्रधारपनको धारण करनेवाले हे प्रभो ! हम आपको नमस्कार करते हैं। योजन तक फैलती हुई वाणीरूपी धारासे, सर्व जगतरूपी बागको हराभरा करनेवाले है जिन । हम आपको प्रणाम करते हैं। हम सामान्य जीवनवालोंने भी, आपके दर्शनसे पाँचवें आरेके जीवनवालोंकासा परम फल पाया है । गर्भ, जन्म, दीक्षा, ज्ञान और मुक्ति रूप पाँच पाँच कल्याणकोंसे नारकियोंको भी सुख देनेवाले हे स्वामी ! हम आपको वंदना करते हैं। मेघ, वायु, चंद्र और सूर्यकी तरह समदृष्टि रखनेवाले हे भगवान! आप हमारे लिए कल्याणका कारण बनें । धन्य है, अष्टापदपर रहनेवाले पक्षी भी कि जो प्रतिदिन आपके दर्शन करते हैं। बहुत देर तक हम आपके दर्शन और पूजन करते रहे हैं। इससे हमारा जीवन धन्य और कृतार्थ हुआ है । ( १२०-१२७) . इस तरह स्तुति कर, पुनः अहँतको नमस्कार कर सगरपुत्र सानंद.मंदिरसे बाहर निकले। फिर उन्होंने भरत चक्रीके भ्राताओंके पवित्र स्तूपोंकी वंदना की। बादमें कुछ सोचकर सगरके बड़े पुत्र जहुकुमारने अपने छोटे भाइयोंसे कहा, "मेरा खयाल है कि इस अष्टापदके जैसा दूसरा कोई उत्तम स्थान नहीं है। इसलिए हम भी यहाँ इसी चैत्यके जैसा दूसरा चैत्य बनवाएँ । अहो ! यद्यपि भरत चक्रवर्तीने भरतक्षेत्र छोड़ दिया है तो भी वह इस पर्वतपर-जो कि भरतक्षेत्रमें सारभूत हैचैत्यके बहाने अब भी अधिकारारूढ़ है।" कुछ ठहरकर फिर बोला, "नवीन चैत्य बनानेकी अपेक्षा, भविष्यमें जिसके लोप होने की संभावना है, इस चैत्यकी यदि हम रक्षा करें तो समझा
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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