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________________ . श्री अजितनाथ-चरित्र [७२१ - सारा द्रव्य अपने पुत्र हरिदासको सौंपकर व्यापारके लिए देशांतर गया। वह बारह बरसतक परदेशमें रह, बहुतसा धन जमा कर, वापस आया और रातको नगरके बाहर ठहरा। रातके समय अपने सब परिवारको छोड़कर अकेला अपने घर गया। कारण1 : ....''उत्कंठा हि बलीयसी।" [उत्कंठा बलवान होती है। उसके पुत्र हरिदासने उसे चोर समझकर तलबारके घाट उतार दिया। ......"विमर्शः क्वाल्पमेधसां।" [अल्पवुद्धि लोगोंको विचार नहीं होता। अपने मारनेवालेको पहचानकर, तत्कालही, उसके लिए, मनमें द्वेषभाव जन्मे और इसी में वह मर गया। पीछेसे हरिदासने अपने पिताको पहचाना। अजानमें किए गए अपने इस अयोग्य कार्यके लिए उसे बहुत दुःख हुआ और पश्चाताप करते हुए उसने अपने पिताकी दाह-क्रिया की। कुछ कालके बाद हरिदास भी मरा । उन दोनोंने कई दुःखदायक भवोंमें भ्रमण किया। अंतमें किसी सुकृतके योगसे भावन सेठका जीव पूर्णमेघ हुआ और हरिदासका जीव सुलोचन हुआ । इस तरह हे राजन ! पूर्णमेघ और सुलोचनका प्राणांतिक बैर पूर्वभवसेही सिद्ध है और इस भवमें तो प्रसंग आने से हुआ है।" ( १०-१६) सगर राजाने फिरसे पूछा, "इन दोनोंके पुत्रों में आपसी बैरका कारण क्या है ? और इस सहस्रनयनके लिए मेरे मनमें प्रेमकी भावना क्यों जागी ?"
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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