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________________ Crs TEद सम् पाँच सगरपुत्रोंका नाश एक वार देवताओंसे निरंतर सेवित, भगवान श्री अजितनाथ स्वामी साकेत नगरके उद्यानमें आकर समोसरे। इंद्रादिक देव और सगरादि राजा यथायोग्य स्थानोंपर बैठे। तव प्रभु धर्मदेशना देने लगे। उस समय पिताके वधका स्मरण करके क्रोधित सहस्रनयनने, वैताठ्य पर्वतपर गरुड़ जैसे सर्पको मारता है वैसेही, अपने शत्रु पूर्णमेघको मार डाला। इसका पुत्र धनवाहन वहाँसे भागकर शरण पाने की इच्छासे समवसरणमें आया। वह भगवानको तीन प्रदक्षिणा देकर, मुसाफिर जैसे वृक्षके नीचे बैठता है वैसे, प्रभुके चरणोंके पास बैठा। उसके पीछेही हाथमें हथियार लिए सहस्रनयन यह बोलता हुआ आया कि, "मैं उसे पातालसे भी खींचकर, स्वर्गसे भी तानकर, वलवानकी शरणमेंसे भी बाहर निकालकर मारूंगा।" वहाँ उसने धनवाहनको समवसरणमें बैठे देखा। प्रभुके प्रतापसे तत्कालही उसका क्रोध शांत हो गया। वह हथियार त्याग, प्रभुको तीन प्रदक्षिणा दे, योग्य स्थानपर बैठा । तब सगर चक्रीने भगवानसे पूछा, "हे प्रभो! पूर्णमेघ और सुलोचनके बैरका कारण क्या है ?" (१-६) __ भगवान बोले, 'पहले सूर्यपुर नगर में भगवान नामका एक करोड़पति वणिक रहता था। एक बार वह सेठ अपना
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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