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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र दर उसे विदा किया और अष्टमभक्तके अंतमें परिवार सहित पारणा किया। वहाँ सगर राजाने आदरपूर्वक कृतमालदेवका अष्टाह्निका उत्सव किया। कारण यह कृत्य देवताओंके लिए प्रीतिदायक होता है। (१४४-१५२) अष्टाह्निका उत्सव पूरा हुआतब चक्रवतीने पश्चिम दिशाके सिंधु निष्कुटको जीतने जानेकी सेनापति रत्नको आज्ञा की। सेनापतिने सर झुकाकर पुष्पमालाकी तरह यह आज्ञा स्वीकार की। फिर वह हस्तिरत्नपर सवार होकर चतुरंगिणी सेना सहित सिंधुके प्रवाहके निकट आया। वह अपने उग्र तेजसे भारतवर्ष में ऐसा प्रसिद्ध था मानो वह इंद्र था या सूरज था । वह सभी तरहके म्लेच्छ लोगोंकी भाषाएँ और लिपियाँ जानता था। वह सरस्वतीके पुत्र के समान सुंदर भाषण करता था। भारतमें जितने देश हैं उनमें और जलस्थल में जितने किले हैं उनमें जाने-आनेके मागोंको वह जानता था। मानो शरीरधारी धनुर्वेद हो ऐसे सभी तरहके हथियार चलाने में वह दक्ष था। उसने स्नान करके प्रायश्चित्त और कौतुकमंगल किया। शुक्लपक्षमें जैसे कम नक्षत्र दिखते हैं वैसे उसने बहुत ही कम मणियोंके आभूषण पहने थे। इंद्रधनुष सहित मेघकी तरह धीर सेनापतिने धनुष और परवालेके विस्तारवाले समुद्रकी तरह चर्मरत्न धारण किया। उसने दंडरत्न ऊँचा किया था इससे वह ऐसा शोभने लगा जैसे पुंडरीक कमलसे सरोवर शोभता है। दोनों तरफ डुलते हुए चमरोंसे वह ऐसा शोभता था मानो उसने शरीरपर चंदनके तिलक-छापे लगाए हों और बाजोंकी आवाजसे वह आकाशको ऐसे गुंजा रहा था जैसे मेघ
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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