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________________ ६६८] त्रिषष्टि शलाका पुस्य-चरित्रः पर्व २. सर्ग ४. प्रियबंधुकं समान उससे सम्मानके साथ बातचीत की और तब उसे विदा दे अष्टमनपका पारगणा किया तथा अपने प्रसादरूपी प्रासादमें स्त्रणकलशकं समान उसका अष्टाह्निकाउत्सव क्रिया। (१३६-१४४) फिर चक्रके पीछे चलकर चक्री तमिस्रा गुफाके पास पहुँचा और वहाँ छावनी डालकर सिंहकी तरह रहा । वहाँ उसने कृतमाल देवका स्मरण करकं अष्टमतप किया। महान पुरुष भी "... "कृत्यं महांतो न त्यजति हि ।" [महान पुरुष जो काम करने योग्य होता है उसको नहीं छोड़ते हैं।] अष्टम तपका फल फला; कृतमाल देवताका श्रासन __ काँपा। कहा है कि "तादृशामाभियोगे हि कंपते पर्वता अपि ।" [वैसे (पराक्रमी) पुरुप जब उद्योग करते हैं तब पर्वत __ भी काँप उठते हैं 1] कृतमाल देवन अवधिज्ञानसे चक्रीका आना जाना और वह स्वामीके पास आतें है वैसे श्राकाशमें आकर खड़ा रहा। उसने त्रियोंके योग्य चौदह तिलक दिए और अच्छे, बंग, वन्त्र, गंधचूर्ण, माला इत्यादि चीजें चक्रीको भेट की और "हे देव आपकी जय हो जय हो।" कहकर चक्रवर्तीकी सेवा स्वीकार की। ___"सेवनीयाचक्रिणो हि देवैरपि नरैरिव ।" मनुष्योंकी नग्ह देवताकि लिए भी चक्रवर्ती संवा करने योग्य होते हैं। चक्रवर्तीन तह सहित बातचीत करके
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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