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________________ ६८२] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३. दुर्बुद्धि, कुलक्रमागत धमको छोड़कर श्रावक हो गए हैं। इस निदाकी पुन्छ परवाह न कर वे श्रावकधर्ममें निश्चल रहे। समयपर उस विप्र-दंपत्ति के गृहस्थाश्रम-वृक्षके फलस्वरूप एक पुत्र उत्पन्न हुआ। (१०६-१११) एक बार शिशिर ऋतुमें शुद्धमट अपने पुत्र को लेकर ब्राह्मणोंकी समासे घिरी हुई धर्मअग्निटिकाके पास गया। तब सभी ब्राह्मण क्रोधसे एक स्वरमें बोल उठे, "तू श्रावक है; यहासे दूर हो ! दूर हो !" इस तरह चांड'लकी तरह उसका तिरस्कार किया गया। वे सभी धर्म अग्निटिकाको अच्छी तरह घेर कर चंठ गए। "..." द्विजातयो जातिधर्मस्तेपा हि मत्सरः ।" [मत्सर करना ब्राह्मणोंका जातिधर्म है।] उनके ऐसे वचनोंसे दुग्नी और क्रुद्ध होकर शुद्धभटने उस समाके सामने प्रतिज्ञा की,-'यदि जिनका कहा हुया धर्म संसार-समुद्रसे तारनेवाला न हो, यदि सर्वज्ञ तीर्थकर अहंन आप्त-देव न हों, बान-दर्शन-चारित्रही यदि मोक्षमार्गन हो और जगतमें यदि ऐसा सम्यक्त्व न हो तो यह मेरा पुत्र जल जाए; और मेन जो कुछ कहा है वह यदि सत्य है तो यह जलती हुई आग मेरे पुत्र के लिए जलके समान शीतल हो जाए।" यों कहकर क्रोधसे, मानो दूसरी श्राग हो इस तरह, उस साहसी ब्राह्मणने अपने पुत्रको जलती आगमें डाल दिया । उस समय, "अरं इस अनार्य ब्राह्मणने अपने पुत्रकोजला दिया।". १-धर्म अंगठी!
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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