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________________ ६७२ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्र: पर्व २. सर्ग ३. जिनको काम पीड़ा नहीं सताती ऐसे ) और अंतराय रहित अतुल्य सुखका चिरकाल तक सेवन करनेवाले होते हैं । इच्छानुसार मिले हुए सब अयों से मनोहर मुम्वरूप अमृतका उपभोग विघ्नरहित करते रहनेमें उन्हें यह भी पता नहीं लगता कि उनकी आयु कैसे बीतती जा रही है ? ऐसे दिव्य भोग भोगनेके वाद अंतमें वे च्यवकर मनुष्यलोकमें उत्तम शरीरधारी मनुष्य जन्मते हैं। मनुष्यलोकमें भी वे दिव्य वंशमें उत्पन्न होते हैं; उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं; वे नित्य उत्सव मनाते हैं और मनको आनंद देनेवाले विविध प्रकारके भोगोंका उपभोग करते हैं। फिर विवेकका याश्रय ले, सभी भोगोंका त्याग कर शुभध्यान द्वारा वे सभी कमाँका नाशकर अव्ययपद (यानी मोक्ष) पातं हैं।" (८०१-८१०) इस तरह सब जीवोंके हितकारी श्री अजितनाथ प्रभुने तीन जगतरूपीकुमुद्दों को आनंदित करनेवाली कौमुदीरूपी धर्मदेशना दी। स्वामीकी देशना सुनकर हजारोंनर-नारियोंने ज्ञान पाया और मोक्षकी मातारूप दीक्षा ग्रहण की। (८६१-८१२) उस समय सगर चक्रवर्ती के पिता वसुमित्रने-जो तबतक भाव यति बनकर घरहीमें रहते थे-भी प्रमुके पाससे दीक्षा ग्रहण की। फिर अजितनाथ स्वामीने गणधरनामकर्मवाले औरअच्छी बुद्धिवाले सिंहलेन इत्यादि पंचानवे मुनियों को, व्याकरणके प्रत्याहारोंके समान उत्पत्ति, विगम' और ध्रौव्यरूप त्रिपदी सुनाई। रेखायोंके श्राधारसे जैसे चित्र बनाया जाता है वेसेही, १-व्याकरण में 'अच ग्रादि प्रत्यय । -विनाश । ३-स्थिति।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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