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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र - [६३७ तरह बढ़ता है जिस तरह दोहदों से वृक्ष फलते हैं। कर्मके अभाव. : से संसारका अभाव होता है। इसलिए विद्वानोंको कर्मका नाश करने के लिए सदा प्रयत्न करना चाहिए। शुभ ध्यानसे कर्मका नाश होता है। वह ध्यान-श्राज्ञा, अपाय, विपाक और संस्थानचितवन नामसे-चार तरहका है। (३३७-४४०) - (१) आज्ञा-आप्त-सर्वज्ञके वचनोंको आज्ञा कहते हैं। वह दो प्रकारकी होती है । आगम आज्ञा और हेतुवाद आज्ञा । जो शब्दोंसे पदार्थों का प्रतिपादन करता है उसे आगम आज्ञा कहते हैं। दूसग, प्रमाणोंकी चर्चासे जो पदार्थोंका प्रतिपादन करता है उसे हेतुवाद आज्ञा कहते हैं। इन दोनोंका समान होना प्रमाण है। दोषरहित कारण के प्रारंभके लक्षणसे प्रमाण होता है। राग, द्वेष और मोहको दोप कहते हैं। ये दोप अहंतोंमें नहीं होते। इसलिए दोपरहित कारणोंसे संभूत ( यानी पैदा हुआ या बोला गया) अहं तोंका वचन प्रमाण है । वह वचन नय और प्रमाणोंसे सिद्ध, पूर्वापर विरोध रहित, दूसरे बलवान शासनोंसे भी अप्रतिक्षेप्य- अकाटय, अंगोपांग, प्रकीर्ण इत्यादि बहुशास्त्ररूपी नदियोंका समुद्ररूप, अनेक अतिशयोंकी साम्राज्य लक्ष्मीसे सुशोभित, दूरभव्य पुरुषोंके लिए दुर्लभ, भव्य पुरुषोंके लिए शीघ्र-सुलभ, गणिपिटकपनसे रहा हुआ और देवों - - . १- प्राचीन कालसे कवियोंकी यह मान्यता चली थाई है कि सुंदर त्रिके स्पर्शसे प्रियंगु, पानकी पीकथूकनेसे मौलसिरी, पैरोंके श्राघात. से अशोक, देखनेसे तिलक, मधुर गानसे शाम और नाचनेसे कचनार श्रादि बन्न फूलते हैं। इन्ही क्रियाओंको दोहद कहते हैं।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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