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________________ ६३६ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३. मुका कर आपको नमस्कार करते हैं; इससे उनके मस्तक कृतार्थ होते हैं मगर जिनके मस्तक आपके सामने नहीं झुकते हैं उन मिथ्याष्टियोंके मस्तक अकृतार्थ हैं व्यर्थ हैं-कमसे कम करोड़ों सुरासुर आपकी सेवा करते हैं। कारण-मूर्ख और श्रालसी पुरुष भी भाग्यके योगसे मिले हुए अर्थके प्रति उदासीनता नहीं 'दिखाते हैं।" (४१८-४३१) इस तरह भगवानकी स्तुति करके विनय सहित जरा पीछे हटकर सगर चक्री इंद्रके पीछे बैठा और नरनारियोंका समूह उसके पीछे बैठा। इस तरह समवसरणके अंतिम ऊँचे गढ़के अंदर भक्ति के द्वारा मानो ध्यानमें स्थित रहा हो इस तरह चतु. विध संघ आकर बैठा। दूसरे गढ़में सर्प और नफुल वगैरा तिर्यंच जाति वैरका भी त्याग करके आपसमें मित्रोंकी तरह बैठे। तीसरे गढ़में प्रभुकी सेवाके लिए आए हुए सुरासुर और मनुष्यों के वाहन थे। इस तरह सबके बैठने के बाद एक योजन तक सुनाई देनेवाली और सभी भाषाओं में समझी जानेवाली मधुर गिरासे भगवान अजित स्त्रामीने धर्मदेशना देना प्रारंभ किया। (४३२--४३६) प्रभुकी देशना .[इस देशनामें धर्मध्यानका वर्णन है; इसीमें तीनों लोकका वर्णन आ गया है। .. "अहो ! उन मुग्धबुद्धि लोगोंको धिक्कार है जो कांचको वैडूर्यमणि और असार संसारको सारवाला जानते हैं। प्रतिक्षण बँधते हुए विविध कर्मों से प्राणियों के लिए यह संसार इसी
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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