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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [६१६ उतरे तव देवताओंके लिए भी दुर्लभ ऐसे तीन रत्नों? को ग्रहण करनेकी इच्छा रखनेवाले प्रभुने सभी वस्त्र व रत्नालंकार उतार दिए और इंद्र के द्वारा दिया गया अदूपित देवदूष्य वस्त्र, उपधि' सहित धर्मको वतानेके लिए (अर्थात् बाह्य साधनोंसे धर्मका परिचय कराने के लिए) ग्रहण किया। ( २५५-२५७) . माघ सुदी १ का दिन था, चंद्रमा रोहिणी नक्षत्रमें आया था ।भगवानने अहमतपकिया था,सार्यकालका समय था,सप्त.. च्छद वृक्ष के नीचे प्रभुने स्वयंही, रागादिककी तरह, मस्तकके केशोंका भी पाँच मुष्ठीसे लोच कर डाला। सौधर्मेंद्रने उन केशोंको, अपने उत्तरीय वस्त्रके पल्लेमें, प्रसादकी तरह मिले हुए अर्थकी तरह ग्रहण किया और तत्कालही उन्हें लेजाकर इस तरह क्षीर समुद्रमें डाल दिया जिस तरह जहाजसे मुसाफिरी करनेवाले मुसाफिर, समुद्र में पूजाकी सामग्री डालते हैं। वहाँ सुर, असुर और मनुष्य आनंद कोलाहल कर रहे थे, उसको, इंद्रने शीघ्रही श्रा, हाथका संकेत कर, चंद किया। तब प्रभु, सिद्धोंको नमस्कार कर सामायिकका उच्चारण करते हुए मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए वाहन के समान चारित्ररूपी रथपर आरूढ़ हुए। दीक्षाका सहोदर हो इस तरह, साथही जन्मा हो, इस तरह चौथा मन:पर्यय ज्ञान उसी समय प्रभुको उत्पन्न हुआ। उस.समय क्षणभरके लिए नारकी जीव भी सुखी हुए और तीनों लोकमें बिजलीके प्रकाशके जैसा प्रकाश हुआ। प्रभुके साथही दूसरे एक हजार राजाओंने भी दीक्षा ली । कारण, १-सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक् चारित्र-ये तीन रत्न हैं। २-धर्मके आवश्यक उपकरण ।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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