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________________ ६१८ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३. साहूकारोंके पुत्रोंने खेलने की इच्छासे, उस वनकी लताओं और वृक्षों के बीचकी जमीन साफ की थी; नगरकी त्रियाँ क्रीड़ा करनेके लिए वहाँ श्राकर कुम्बक (एक तरहके पुष्पोंका वृक्ष), बकुल, अशोक इत्यादि वृक्षोंके दोहद पूरे करती थीं; विद्याधरोंके कुमार कौतुकसे मुसाफिरोंकी तरह बैठकर मरनोंका मधुर लन पीते थे; जिनकी चोटियाँ मानो आकाशको छू रही हों ऐसे, ऊँचे वृक्षोंपर खेचरोंकी जोड़ियाँ आकर क्रीड़ाके लिए बैठती थीं; वे जोड़ियाँ हंसोको जोड़ियोंसी लान पड़ती थी; दिव्य कपूर और कस्तुरीके चूर्णके समान, घुटनों तक पड़े हुए कोमल पराग से उस वनकी जमीन चारों तरफ रेतीली जान पड़ती थी; उद्यान पालिकाएँ (मालिने), खिरणी, नारंगी और करनोंके वृक्षोंके नीचेके आलबालों (बालों ) को दूधसे भरती थी; मालिनॉकी लड़कियाँ विचित्रथनके काममें सही कर सुंदर फूलोंकी मालाएँ बनाती थीं। अनेक मनुष्य, उत्तम शव्या, आसन और बरतनोंके होते हुए भी केलोंके पत्तोंमें शयन, श्रासन और भोजन करते थे; लंबी लंबी शास्त्राओंवाले, फलोंके भारसे झुके हुए, तरह नरहके वृक्ष पृथ्वीको स्पर्श करते थे; श्रामकी बोराके स्वादस उस वनकी कोकिलाओंका मद उतरता न था दाडिमके स्वादस उन्मत्त बने हुए शुक पक्षियोंके कोलाहलसे वह वन भर रहा था और वर्षा ऋतुके बादलोंकी तरह फैल हए वृक्षोंसे वह उद्यान एक छायावाला जान पड़ता था। ऐसे मुंदर उद्यानमें अजित स्वामीने प्रवेश किया । (२४०-२५४) फिर रथी जैसे रथसे उतरता है वैसेही, संसारसिंधुको पार करने के लिए जगद्गुरु भगवान बुद शिधिकारत्नसे नीचे
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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