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________________ ६१2 ] त्रिषष्टि शशाचा पुग्य-चरित्र: पर्व २. सर्ग३. में वहाँ आ पहुँचा । उस समय दूसरे सुरेंद्र और अमुरेंद्र भी, प्रमुछा दीनामहोत्सव जान, वहाँ श्राप। वहाँ अच्युत आदि सुरेन और सगर आदि नरेंद्रॉन अनुक्रमसे प्रमुका दीक्षामिषेक किया। शिरमणिकार. जैस माणिक्यको साफ करता है वैसही इंद्रने, स्नान जनसे मीन हुए प्रभुके शरीरको देवदूट्य बन्न मार्जन किया-बॉछा और गंधकार की तरह अपने. हासि सुंदर अंगराग (यटन द्वारा प्रभुको चर्चित कियाप्रमुके शरीरपर उबटन लगाया। धर्मभावनाल्पी धनवाने इंडने, प्रमुळे शरीरमें पवित्र देवदृश्य बन्न पहनाए । उसने मुकुट, इंडन, हार, बाजूबंद, कंकग और दूसरे अनेक अलंकार प्रभुको धारण करापालांकी दिव्य मालाओंने जिनके केश सुशो. भिन्न हो रहे हैं। दीन नेत्र समान तिलकसे जिनका ललाट शोभायमान है। देवी, दानवी और मानवी त्रियाँ विचित्र भाषामें जिनके मधुर नंगलगान कर रही है; चारण-माटोंकी तरह सुरेंद्र, अमुरेंद्र और नरेंद्र जिनकी नुति कर रहे हैं। सोनकी धूपदानियाँ लेकर व्यंतर देवता जिनके सामने धूप कर रहे हैं: पचन्हमें हिमवत पर्वतकी नरह मस्तकपर रहं हुए श्वेत छत्रसे लो मुशामिन है, चमर धारण करनेवाले देवता दोनों तरफ. जिनके कमर डुला रहे है, नत्र छड़ादारकी तरह इंद्रने जिनको. हायका सहारा दिया है और हय तथा शोको मूह बने हुए. सुगर राना, अनुकूल पवनसे न्नमर नरमर बरसती हुई वाकी तरह, आँसू बहात हुए जिनके पीछे चल रहे हैं, ऐसे प्रभु स्यलकमलके समान चरणों द्वारा चारों तरफ पृथ्वीको पवित्र करत हप, हजार पुल्यों के द्वारा उठाई जाने योग्य सुप्रमा नाम
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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