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________________ श्री भजितनाथ-चरित्र ६73 - थे। हर रोज एक करोड़ और आठ लाख स्वर्णमुहरें दानमें देते ये। सालभरमें उन्होंने तीन सौ अठासी करोद और अल्ली लाख स्वर्णमुद्राएँ दी। कालके अनुभाव (सामर्थ्य ) से और प्रभुके प्रभावसे याचकोंको इच्छित धन दिया जाता था; किंतु वे भाग्यसे अधिक ले नहीं सकते थे। अचिंत्य महिमावाले और दयारूपी धनवाले प्रभुने एक वर्ष तक पृथ्वीको (पृथ्वीके लोगोंको) चिंता. मणिरत्नकी तरह धनसे तृप्त किया । (१७-१८) वार्षिक दानके अंतमें इंद्रका श्रासन काँपा। इससे उसने अवधिज्ञानसे प्रभुका दीक्षा समय जाना। यह भगवानका निष्क मणोत्सव करने के लिए अपने सामानिकादि देवोंके साथ प्रभुके पास जानेको रवाना हुया। उस समय इंद्र, ऐसा मालूम होता था मानो, वह दिशामि विमानसि चलने हुए मंडप बना रहा था, हाथियोंसे उड़ते हुए, पर्वत बना रहा था, तरंगांसे समुद्रकी तरह आकाशपर आक्रमण कर रहा था, अत्यलिन गनिवाले रथोंको सूर्य रयसे टकरा रहा था और बुधमाकी मालाके भारवाले, दिग्गजोंके कर्णतालका ( कानोंके हिलनेसे होनेवाली आषाजका) अनुकरण करते हुए ध्वजांकुशांसे श्राकाशको निलकित कर रहा था। कई देवता गांधार स्वरसे आम गायन गाते थे; फई देयता नवीन यनाए हुए काव्योंसे उसकी स्तुनि पास थः कई देवता गुन्यपर वस्त्र रम्यक (धीर चीन) उसमें पाराचीन फरते थे और कई देवता उसे यके तीर्थकरी पारितोषागार करावे थे। (Pt-१५) इस सरहद्र. ज्यामीक परामलोस पनि पनी अयोध्या नगरीको स्वर्गसे भी अपनी मानता पायोडगमगय.
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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