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________________ ... ... ... . प्रथम भव-धनसेठ .. .. [३६ मैं कवचधारी महाबलकुमारको राजका भार सौंपकर इच्छानुसार जीवन सुधारूँ"। ( २५०-२६५) . . . - इस तरह विचारकर शतवल राजाने तुरत महावलकुमारको बुलाया और उस विनीतकुमारको राज्य-भार उठानेका उपदेश दिया। पिताकी आज्ञासे राजकुमारने यह बात मंजूर की। कारण. "भवंति हि महात्मानो गुर्वाज्ञाभंगभीरवः ।" [महात्मा लोग ( अच्छी आत्मावाले लोग ) गुरुजनोंकी (बुजुरगोंकी) आज्ञा भंग करने से डरते हैं। ] (२६६) फिर राजा शतवलने महावलकुमारको सिंहासनपर बिठा, राज्याभिषेक कर अपने हाथोंसे मंगलतिलक किया। कुंदपुष्प ( मोगरेके फूल ) के समान कांतिवाले चंदनके तिलकसे वह नवीन राजा ऐसा सुशोभित हुआ जैसे चंद्रमासे उदयाचल (पर्वतविशेष) सुशोभित होता है। अपने पिताके हंसके पंखोंके समान आतापपत्रसे (छत्रसे) इस तरह सुशोभित हुआ जिसतरह गिरिराज शरदऋतुके बादलोंसे सुशोभित होता है। उड़ती हुई विमल बगुलोंको जोड़ीसे जैसे मेघ शोभता है वैसेही दोनों तरफ डुलते हुए चँवरोंसे वह शोभने लगा। चंद्रो. दयके समय जैसे समुद्र ध्वनि (आवाज) करता है वैसेही अभिपेकके समयकी स्तुति पाठकोंकी मंगलध्वनिसे दिशाएँ ध्वनित हो उठीं। सामंत और मंत्रियोंने महाबलको, शतवलका रूपांतर जानकर मस्तकानमाया और उसकी आज्ञा माननेकी तत्परता बताई। (२६६-३७३ ।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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