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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [५८६ जितशत्रु राजाको पुत्रोत्पत्तिकी बधाई दी। इसे सुनकर राजाने उनको ऐसा इनाम दिया कि जिससे उनके कुलमें भी लक्ष्मी; कामधेनुकी तरह, अविच्छिन्न हुई। इस समाचारसे उसका शरीर ऐसा. प्रफुल्लित हुआ जैसे घनके आगमनसे सिंधु नदी और चंद्रमाके आगमनसे समुद्र होता है। उस समय राजाने पृथ्वीके साथ उच्छवास,' आकाशके साथ प्रसन्नता और पवन के साथ तृप्ति प्राप्त की। उसने उसी समय अपने जेलखाने खोल दिए, अपने शत्रुओंको भी मुक्त कर दिया। इससे बंधन केवल हाथी वगैरहके ही रहे। इंद्र जैसे शास्वत जिनविबोंकी पूजा करते हैं वैसेही, राजाने चैत्योंमें जिनवित्रोंकी अदभुत पूजा की। याचकोंको, अपने-पराएका खयाल न करके, धनसे प्रसन्न किया.। कारण "सर्वसाधारणी वृष्टिारिदस्योद्यतस्य हि ।" [ उद्यत हुए (अर्थात आकाशमें आए हुए ) मेघकी वृष्टि सबके लिए समानही होती है।] खूटेसे छूटे हुए बछड़ोंकी तरह उछलते-कूदते विद्यार्थियोंके साथ, उपाध्याय (अध्यापक) सूत. मातृकाका पाठ करते हुए वहाँ आए। किसी जगह ब्राहमणोंकी वेदोदित मंत्रोंकी बड़ी ध्वनि होने लगी; किसी जगह लग्नादिके विचारसे सारवाली मुहूर्त संबंधिनी उक्तियों होने लगी; किसी जगह कुलीन कांताओंके, मुंडके झंड, हर्प पैदा करनेवाली ध्वनिसे गीत गाने लगी; किसी जगह वारांगनाओंकी मांगलिक गीत ध्वनियों सुनाई देने लगी, किसी जगह बंदियोंका (भाटोंका) - १-दाढस।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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