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________________ ५८८ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पत्र २, सर्ग २. उधर दूसरे सभी इंद्र देवताओंके साथ, अानंदपूर्ण हृदय सहित मेरुपर्वतसे नंदीश्वर द्वीप गए । मौधमेंद्र भी, भगवानको नमस्कार कर. जितशत्रु गजाके घर निकन कर, तत्काल ही नंदीश्वर द्वीप पहुँचे । उसने दक्षिगा अंजनाद्रिक शाश्वत चैत्यमें शाश्वन अहतोकी प्रनिमाके पास अष्टाद्रिका उत्सव किया; और. उसके चार लोकपालान, अंजनादिक चारा नरफ चार दधि. मुख पर्वतों पर चैत्यों में दर्षके साथ उत्सव किया। ईशानंद्रने उत्तरके अंजनाद्रि पर्वत पर शाश्चन चैत्यमें शाश्वत जिनप्रतिमाका अष्टाहिका उत्सव किया। उसके चार लोकपालाने अंजनाद्रिके चारों तरफ चार दधिमुम्ब पर्वनापरकं चैत्यों में ऋषमादि. की प्रतिमाका उत्सव किया। चमरेंद्रने पूर्व अंजनादिपर श्रीर बलीद्रन पश्चिम अंजनाचलपर. अष्टादिका उत्सव किया। चमरंदकं लोकपालनि पूर्वक अंजनादिके चारों तरफ चार दधिमुग्न पर्वतांपर और बलीदक लोकपालान पश्चिम अंजनाचलके चारों तरफ चार दधिमुग्य पर्वतोपर, चैत्यों में प्रतिमाओंका उत्सव किया। फिर तकन-स्थानकी तरह उस द्वीपसे सभी मुरव श्रनुर अपनको कनकस्य मानते हुए अपने अपने स्थानाको गए। (५२-५२८) . सगरका जन्म .. इसी रानको प्रमुक नन्मकं वादही वैजयंतीने मी गंगा जैसे स्वर्ण-कमलको पैदा करनी है बैंसड़ी, मुन्नपूर्वक एक पुत्रको जन्म दिया। ... राज्य में पुत्रजन्मका उत्सव पत्नी और वधू-गेसे विजया और जयंती परिवारने,
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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