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________________ ___५८४ त्रिपष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पव २. सर्ग २. - -- _ इस तरह इंद्रने उनकी, अतिशयगर्भित, स्तुति की। फिर वह थोड़ा पीछे हटा और हाथ जोड़कर प्रभुकी भक्ति करनेवाला वह इंद्र सुश्रपा करनेको तत्पर होकर रहा। तब दूसरे वासठ इंद्राने भी, अपने परिवार सहित, अच्युतेंद्रकी तरह, प्रभुका अभिषेक किया । अभिपेकके बाद स्तुति-नमस्कार कर जरा पीछे हुटं, हाथ जोड़, दासकी तरह तैयार होकर, वे प्रभुकी उपासना करने लगे। (१७६-४८१) फिर सौधर्म देवलोकके इंद्रकी तरह, ईशान कल्पके इंद्रने अति भक्ति सहित अपने शरीरके पाँच रुप बनाए । फिर वह अपने एक रूपसे अर्धचंद्रके समान आकृतिवाली, अतिपांडुकबला नामकी शिलापर ईशान कल्पकी तरह, सिंहासनपर बैठा। जिनभक्तिमें प्रयत्नवान उसने, प्रभुको शकेंद्रकी गोदसे इसी तरह अपनी गोद लिया जिस तरह किसीको एक रथसे दूसरे रथमें लेते हैं। दूसरे रूपसे, उसने प्रभुके मस्तकपर छत्र घरा, तीसरे और चौथे रूपोसे, वह प्रभुके दोनों तरफ चमर लेकर खड़ा रहा और पाँचवं रूपसे, वह हाथमें त्रिशूल लेकर जगतपतिके सामने खड़ा रहा । उस समय उदार आकारवाला, - के चार जन्मजात होते हैं उनकी बात कही गई है। वे ये हैं १-तीर्थकर अति सुंदर होते हैं और उनके शरीर में पीना न मंल नहीं होता। २-उनका लोह-मास दुगंधहीन और दूधसा सफेद होता है। ३-उनके श्रादार और निहार खिोंसे नहीं दिखते। ४-उनके श्वासोच्छ्वासमें कमलके समान सुगंध होती है।]
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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